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राजयोग की यात्रा – स्वर्ग की और दौड़

राजयोग की यात्रा – स्वर्ग की और दौड़

राजयोग की यात्रा – स्वर्ग की और दौड़

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राजयोग के निरंतर अभ्यास से मनुष्य को अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त होती है | इन शक्तियों के द्वारा ही मनुष्य सांसारिक रुकावटों को पार कर्ता हुआआध्यात्मित्क मार्ग की और अग्रसर होता है | आज मनुष्य अनेक प्रकार के रोग, शोक, चिन्ता और परेशानियों से ग्रसित है और यह सृष्टि ही घोर नरक बन गई है | इससे निकलकर स्वर्ग में जाना हर एक प्राणी चाहता है लेकिन नरक से स्वर्ग की और का मार्ग कई रुकावटों से युक्त है | काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार उसके रास्ते में मुख्य बाधा डालते है | पुरुषोतम संगम युग में ज्ञान सागर परमात्मा शिव जो सहज राजयोग की शिक्षा प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा दे रहे है, उसे धारण करने से ही मनुष्य इन प्रबल शत्रुओं (५ विकारों) को जीत सकता है |चित्र में दिखाया है कि नरक से स्वर्ग में जाने के लिए पहले-पहले मनुष्य को काम विकार की ऊंची दीवार को पार करना पड़ता है जिसमे नुकीले शीशों की बाढ़ लगी हुई है | सको पार करने में कई व्यक्ति देह-अभिमान के कारण से सफलता नहीं प् सकते है और इसीलिए नुकीलें शीशों पर गिरकर लहू-लुहान हो जाते है | विकारी दृष्टी, कृति, वृति ही मनुष्य को इस दीवार को पार नहीं करने देती | अत: पवित्र दृष्टी (Civil Eye) बनाना इन विकारों को जीतने के लिए अति आवश्यक है |दूसरा भयंकर विघ्न क्रोध रूपी अग्नि-चक्र है | क्रोध के वश होकर मनुष्य सत्य और असत्य की पहचान भी नहीं कर पाता है और साथ ही उसमे ईर्ष्या, द्वेष, घृणा आदि विकारों का समावेश हो जाता है जिसकी अग्नि में वह स्वयं तो जलता ही है साथ में अन्य मनुष्यों को भी जलाता है | इस भधा को पार करने के लिए ‘स्वधर्म’ में अर्थात ‘मैं आत्मा शांत स्वरूप हूँ’ – इस स्तिथि में स्थित होना अत्यावश्यक है | लोभ भी मनुष्य को उसके सत्य पथ से प्रे हटाने के लिए मार्ग में खड़ा है | लोभी मनुष्य को कभी भी शान्ति नहीं मिल सकती और वह मन को परमात्मा की याद में नहीं टिका सकता | अत: स्वर्ग की प्राप्ति के लिए मनुष्य को धन व खजाने के लालच और सोने की चमक के आकर्षण पर भी जीत पानी है |मोह भी एक ऐसी बाधा है जो जाल की तरह खड़ी रहती है | मनुष्य मोह के कड़े बन्धन-वश, अपने धर्म व कार्य को भूल जाता है और पुरुषार्थ हींन बन जाता है | तभी गीता में भगवान ने कहा है कि ‘नष्टोमोहा स्मृतिर्लब्धा:’ बनो, अर्थात देह सहित देह के सर्व सम्बन्धों के मोह-जाल से निकल कर परमात्मा की याद में स्थित हो जाओ और अपने कर्तव्य को करो, इससे ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकेगी | इसके लिए आवश्यक है कि मनुष्यात्मा मोह के बन्धनों से मुक्ति पाए, तभी माया के बन्धनों से छुटकारा मिलेगा और स्वर्ग की प्राप्ति होगी |अंहकार भी मनुष्य की उन्नति के मार्ग में पहाड़ की तरह रुकावट डालता है | अहंकारी मनुष्य कभी भी परमात्मा के निकट नहीं पहुँच सकता है | अहंकार के वश ,मनुष्य पहाड़ की ऊंची छोटी से गिरने के समान चकनाचूर हो जाता है | अत: स्वर्ग में जाने के लिए अहंकार को भी जीतना आवश्यक है | अत: याद रहे कि इन विकारों पर विजय प्राप्त करके मनुष्य से देवता बनने वाले ही नर-नारी स्वर्ग में जा सकती है, वरना हर एक व्यक्ति के मरने के बाद जो यह ख दिया जाता है कि ‘वह स्वर्गवासी हुआ’, यह सरासर गलत है | यदि हर कोई मरने के बाद स्वर्ग जा रहा होता तो जन-संख्या कम हो जाती और स्वर्ग में भीड़ लग जाती और मृतक के सम्बन्धी मातम न करते |

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