१ दादीजी कुछ बोल के द्वारा सिखाती थी , कुछ दिव्या चलन द्वारा सिखाती थी , कुछ दिव्या अध्यात्मिक
प्रकाम्पनो द्वारा सिकाती थी
२ नित्य सुबह हर राज्रिशियोंके संघटन को उध्भोधन कराती थी . जिन अध्यात्मिक राजो भरा महावाक्य वो
उच्छारते थे उसको हम मुरली कहते है .नित्य सही समय पर सभी को सम्भोदन करते थे . कई आयामों वाला
इस महान विभुतियोमें थोड़ी सी जहलक मैंने जो देखा वो इस प्रकार है
३ जब वो इस ईश्वरीय महावाक्य पड़ती थी ऐसे लगता था जैसे एक आकाशवाणी हो रही एक अवतरित फरिश्ता
दिव्या स्मृति में वो ईश्वरीय महावाक्य पद रहे है
४ जब भी वो इन् महाव्क्य उच्चारते थे ..सुनने वाले अनुभुतियोमें खो जाते थे ..खुद वो इस स्वरुप में रहकर मुरली
पदाठी थी
५ हमें ऐसा लगता था की दादीजी महावाक्य बहुत गहराई में बहुत न्यारापन से अपने लिए पढ़ रही है .खुद वो
ईश्वरीय नशे में रहती थी की भगवान् खुद उनको पढ़ा रहे है
६ महावाक्य सुनाने वालोंको पता ही नहीं चलता था समय कब पूरा हुआ है ...पूरा एक घंटा ऐसे ही चला जाता था .
७ उन् महाव्क्यो में जितना भी बाते सरल हो उन् छोटी बातो नकी गहराई की अनुभूति वो करती थी
८ जभ भी इसके उंदर धारनओंकी ओंकी बात आती थी .खुद उन् स्वरुप में रहकर ..सभी को ऐसे महसूस कराती
थी की ऐ सब ऊंची धारानाये नेचरल है .सहज है ,बहुत ऊंची सच्चाई वाला है .इसको अपनाने में सहज ख़ुशी
की भंडार है .सदा इन् धारणा ओमें वो चिपकी हुयी जैसे लगती थी .सामने वाले विद्यार्थी ऐसे महससू करते
की असत्यता वाला धारणा फीखा फीखा है ..जैसे नकारात्मक धारणा ओमें कोई दम नहीं है
१० उनके बोल सुनते बुद्धि एकाग्र हो जाती थी
११ कोई भी विद्यार्थी उनके द्वारा सुनी महावाक्यो ओंको फिर से जभ भी एकांत में जभ सुनता था
वही दिव्या अनुभूतियाँ करता था .हुम थो रात को जागकर २ बजे एकांत में वही महाव्क्य सुनाते थे ऐसे थी हमारे प्यारे दादीजी ...जो एक इतिहास बन गयी ...एक यादगार बन गयी ...साधानाओंके प्रेरणा स्त्रोत
बन गयी .जो उन के द्वारा ऐ पालना लिया वो थो पदमा पदम् भाग्यशाली है ही