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अप्रैल फ़ूल दिवस
अप्रैलफ़ूलदिवस अर्थात् ‘मूर्ख दिवस’ को 1 अप्रैल के दिन विश्वभर में मौज-मस्ती और हंसी-मजाक के साथ एक-दूसरे को मूर्ख बनाते हुए मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने मित्रों, पड़ोसियों और यहाँ तक कि घर के सदस्यों से भी बड़े ही विचित्र प्रकार के हंसी-मजाक, मूर्खतापूर्ण कार्य और धोखे में डालने वाले उपहार देकर आनंद लेते हैं।
लोकप्रियता
'ऑल फ़ूल्स डे' के रूप में जाना जाने वाला यह दिन, 1 अप्रैल एक आधिकारिक छुट्टी का दिन नहीं है, लेकिन इसे व्यापक रूप से एक ऐसे दिन के रूप में जाना और मनाया जाता है, जब एक दूसरे के साथ व्यावाहारिक मजाक और सामान्य तौर पर मूर्खतापूर्ण हरकतें की जाती हैं। यह दिन मूर्ख बनकर या मूर्ख बनाकर भी मन को सुख देता है। यही अनूठा भाव ही इसकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है। मूर्ख बनने या बनाने का अर्थ ठगने या ठगाने से नहीं है, वरन इसका संबंध थोडा-सा सुख और आनंद पाने की उन मानवीय भावनाओं से है, जिसके लिये हर व्यक्ति जीवन में दिन-रात जूझता है।
1 अप्रैल को किसी भी मित्र को मूर्ख बनाने का अपना अलग ही मजा है। कई बार तो मूर्ख बनने वाले को काफ़ी कष्ट भी पहुँचता है। दौड़-धूप और काफ़ी खर्च करने के पश्चात् ही मूर्ख बनने वाला यह समझ जाता है कि उसे ‘अप्रैल फ़ूल’ बनाया गया है। लेकिन हर व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए, कि अपने मजाक से किसी का बुरा न हो।
लोककथाएँ
मूर्ख दिवस के विषय में संसार में कई लोककथाएँ प्रचलित हैं। हर कथा का मूल उद्देश्य यही है कि पूरे दिन को मनोरंजन के साथ व्यतीत करना। इस दिवस की कुछ कथाओं की जानकारी इस प्रकार से है-
विदेशों का अप्रैल फ़ूल
भारत के अलावा विदेशों में भी लोग अपनी-अपनी संस्कृति के अनुसार ‘मूर्ख दिवस’ मनाते हैं। अप्रैल फ़ूल दिवस पश्चिमी देशों में हर साल पहली अप्रैल को मनाया जाता है। फ़्राँस में ‘अप्रैल फ़ूल’ के दिन मूर्खों, कवियों और व्यंग्यकारों का रोमांचक कार्यक्रम होता है। यह कार्यक्रम 7 दिनों तक लगातार चलता है। इस मनोरंजक कार्यक्रम में भाग लेने वाले युवक को युवती की ड्रेस पहननी पड़ती है। इस कार्यक्रम में अश्लीलता की झलक नहीं मिलती। मूर्ख बने व्यक्ति को ईनाम दिया जाता है। चीन में ‘अप्रैल फ़ूल’ के दिन बैरंग पार्सल भेजने और मिठाई बांटने की परंपरा है। इस दिन यहाँ के बच्चे खूब हंसते हैं। यहाँ के लोग जंगली जानवर के मुखौटे पहनकर आने-जाने वाले लोगों को डराते हैं। कई लोग तो सच में जानवर समझ कर डर जाते हैं।
रोम में ‘अप्रैल फ़ूल’ को फ़्राँस की भांति ही 7 दिनों तक मनाया जाता है और चीन की भांति बैरंग पार्सल भेज कर मूर्ख बनाया जाता है। जापान में बच्चे पतंग पर इनामी घोषणा लिख कर उड़ाते हैं। पतंग पकड़ कर इनाम मांगने वाला ‘अप्रैल फ़ूल’ बन जाता है। इंग्लैंड में ‘अप्रैल फ़ूल’ के दिन अत्यंत मनोरंजक एवं रोचक कार्यक्रम होते हैं। इस कार्यक्रम में मूर्खता भरे गीत गाकर, मूर्ख गायन करके मूर्ख बनाया जाता है। स्कॉटलैंड में ‘मूर्ख दिवस’ को ‘हंटिंग द कूल’ के नाम से जाना जाता है। मुर्गा चुराना यहाँ की विशेष परंपरा है। मुर्गे का मालिक भी इसका तनिक बुरा नहीं मानता। किसी का मुर्गा चुराकर मजा लूटना यहाँ के लोगों का ‘अप्रैल फ़ूल’ मनाने का तरीका तो है ही, साथ ही नए-नए तरीके ढूंढ़ कर एक-दूसरे को भी बेवकूफ बनाते हैं। स्पेन में इस परंपरा की शुरुआत यहाँ के पूर्व राजा ‘माउंटोबेट’ ने की थी। इस दिन बहुत हंसी-मजाक का कार्यक्रम चलता है। झूठे इतिहास पर इनाम भी दिया जाता है।
इतिहास
पारंपरिक तौर पर कुछ देशों जैसे न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में इस तरह के मजाक केवल दोपहर तक ही किये जाते हैं, और अगर कोई दोपहर के बाद किसी तरह की कोशिश करता है तो उसे "अप्रैल फ़ूल" कहा जाता है। ऐसा इसीलिये किया जाता है क्योंकि ब्रिटेन के अखबार जो अप्रैल फ़ूल पर मुख्य पृष्ठ निकालते हैं वे ऐसा सिर्फ पहले (सुबह के) एडिशन के लिए ही करते हैं। इसके अलावा फ्रांस, आयरलैंड, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान, रूस, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में जोक्स का सिलसिला दिन भर चलता रहता है। 1 अप्रैल और मूर्खता के बीच सबसे पहला दर्ज किया गया संबंध चॉसर के कैंटरबरी टेल्स (1392) में पाया जाता है। ब्रिटिश लेखक चौसर की किताब 'द कैंटरबरी टेल्स' में कैंटरबरी नाम के एक कस्बे का ज़िक्र है। इसमें इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द्वितीय और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई की तारीख 32 मार्च 1381 को होने की घोषणा की जाती है, जिसे कस्बे के लोग सही मानकर मूर्ख बन जाते हैं। तभी से एक अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाया जाता है।
बहुत से लोगो का मानना है की अप्रैल फ़ूल की शुरुवात 17वीं सदी से हुई, परन्तु पहली अप्रैल को 'फ़ूल्स डे' के रूप मे माना जाना और लोगो लोगों के साथ हंसी मज्ज़ाक करने का सिलसिला सन् 1564 के बाद फ़्राँस से शुरू हुआ। इस परंपरा की शुरुवात की कहानी बड़ी ही मनोरंजक है। 1564 से पहले यूरोप के लगभग सभी देशों मे एक जैसा कैलेंडर प्रचलित था, जिसमे हर नया वर्ष पहली अप्रैल से शुरू होता था। उन दिनों पहली अप्रैल के दिन को लोग नववर्ष के प्रथम दिन की तरह ठीक इसी प्रकार मनाते थे, जैसे आज हम पहली जनवरी को मनाते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे को नववर्ष के उपहार देते थे, शुभ-कामनाएँ भेजते थे और एक दूसरे के घर मिलने को जाया करते थे। सन् 1564 मे वहाँ के राजा चार्ल्स नवम ने एक बेहतर कैलेंडर को अपनाने का आदेश दिया। इस नए कैलेंडर मे आज की तरह 1 जनवरी को वर्ष का प्रथम दिन माना गया था। अधिकतर लोगो ने इस नए कैलेंडर को अपना लिया, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने नए कैलेंडर को अपनाने से इंकार कर दिया था। वह पहली जनवरी को वर्ष का नया दिन न मानकर पहली अप्रैल को ही वर्ष का पहला दिन मानते थे। ऐसे लोगो को मूर्ख समझकर नया कैलेंडर अपनाने वालो ने पहली अप्रैल के दिन विचित्र प्रकार के मज्ज़ाक और झूठे उपहार देने शुरू कर दिए और तभी से आज तक पहली अप्रैल को लोग 'फ़ूल्स डे' के रूप मे मनाते हैं। आज के लोग इन पुरानी बैटन को तो भूल गए हैं, लेकिन पहली अप्रैल को फ़ूल्स डे मनाना अभी तक नहीं भूले हैं। ये अब एक तरह से हर वर्ष आने वाले त्योहारों की ही तरह हमारे जीवन मे शामिल हो गया है।
रोम, मध्य यूरोप और हिन्दू समुदाय में 20 मार्च से लेकर 5 अप्रैल तक नया साल मनाया जाता है। इस दौरान 'वसंत ऋतु' होती है। जूनियल कैलेंडर ने 1 अप्रैल से नया साल माना, जोकि सन् 1582 तक मनाया गया। इसके बाद पोप ग्रेगी 13वें ने ग्रेगियन कैलेंडर बनाया। इसके अनुसार 1 जनवरी को नया साल घोषित किया गया। कई देशों ने सन् 1660 में ग्रेगीयन कैलेंडर स्वीकार कर लिया। जर्मनी, दनिश और नार्वे में सन् 1700 और इंग्लैंड में 1759 में एक जनवरी को नए साल के रूप में स्वीकार किया गया। फ़्राँस के लोगों को लगा की साल का पहला दिन बदलकर उन्हें मूर्ख बनाया गया है और पुराने कैलेंडर के नववर्ष को उन्होंने मूर्ख दिवस घोषित कर दिया।
मूर्ख दिवस का विरोध
अप्रैल के मूर्ख दिवस को रोकने के लिए यूरोप के कई देश में समय-समय पर अनेक कोशिश हुई, लाख विरोध के बावजूद यह दिवस मनाया जाता रहा है। अब तो लोगों ने 1 अप्रैल को परम्परा के रूप में ले लिया। इस दिवस को मनाने वाले कुछ लोगों का कहना है कि इस को हम इसलिए मनाते हैं ताकि मूर्खता जो मनुष्य का जन्मजात स्वभाव है। वर्ष में एक बार सब आज़ाद हो कर हर तरह से इस दिवस को मनाये और इस दिवस पर जम कर हंसे। जिससे मन मस्तक में ऊर्जा का संचार पैदा हो। कहावत है कि एक बार हास्य प्रेमी भारतेंदु हरिश्चंद्र ने बनारस में ढिंढोरा पिटवा दिया कि अमुक वैज्ञानिक अमुक समय पर चन्द्रमा और सूरज को धरती पर उतार कर दिखायेंगे। नियत समय पर लोगों की भीड़ इस अद्भुत करिश्मे को देखने को जमा हो गई। घंटो लोग इंतज़ार में बैठे रहे परन्तु वहाँ कोई वैज्ञानिक नहीं दिखायी दिया उस दिन 1 अप्रैल था, लोग मूर्ख बन के वापस आ गए। अब तो पूरी दुनिया में ही अप्रैल-फ़ूल का प्रचलन बढ़ चला है, ऐसे में भारत भी अछूता नहीं रहा है। हर कोई एक दिन पहले से ही तैयारी करने लगता है कि किसे-किसे मूर्ख बनाना है, और कैसे बनाना है।
सौजन्य - भारत डिस्कवरी प्रस्तुति