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बीकेवार्ता वेबपोर्टल : उदघाटन के ऐतिहासिक क्षण प्रकाशन शुभारम्भ दि 28 नवम्बर, 2009
बीकेवार्ता आर्टिकल बँक |
बीकेवार्ता आर्टिकल बँक - ब्रहृमाकुमारीज वार्ता का अनोखा प्रयास
आध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर विभिन्न प्रकार के आर्टिकल्स्
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आर्टिकल बँक के उद्देश्य :
बहूतसे सेवाकेंद्र की तथा प्रेस के भाई बहनों की माँग रहती है की उन्हें नये विषय पर ब्राहृाकुमारीज् आर्टिकल्स की आवश्यकता रहती है. जैसे मन की शांती, जीवन में सुख शांती प्राप्त करने की बातें, तनाव मुक्त जीवन आदि विषयोंपर समाचार पत्रों के लिए तथा पढने के लिए तथा दुसरों को समझाने हेतू आर्टिकल्स चाहिए और वह भी हिंदी तथा अपनी प्रादेशिक/रिजनल भाषाओं में, बीकेवार्ता ने इस बात को देखते हूए बहनों तथा भाइयों की मांग को कुछ हद तक पूरी करने का प्रयास किया है, ज्ञानसागर परमात्मा से कुछ ज्ञान की अंजली को जनमाध्यमोंको देने हेतू ज्ञानांजली - बीकेवार्ता आर्टिकल बँक को शुरु किया है,
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विश्व पर्यावरण दिवस
संयुक्त राष्ट्र द्वारा सकारात्मक पर्यावरण कार्य हेतु दुनियाभर में मनाया जाने वाला 'विश्व पर्यावरण दिवस' सबसे बड़ा उत्सव है। पर्यावरण और जीवन का अन्योन्याश्रित संबंध है तथापि हमें अलग से यह दिवस मनाकर पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन और विकास का संकल्प लेने की आवश्यकता पड़ रही है। यह चिंताजनक ही नहीं, शर्मनाक भी है। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टाकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों कोप्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। तथा इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनीतिक चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था। उक्त गोष्ठी में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 'पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव' विषय पर व्याख्यान दिया था। पर्यावरण-सुरक्षा की दिशा में यह भारत का प्रारंभिक क़दम था। तभी से हम प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते आ रहे हैं।
विचारपुष्प - जो संकल्प करो उसे बीच-बीच में दृढ़ता का ठप्पा लगाओ तो विजयी बन जायेंगे !
ब्रह्माकुमारीज खबरे -अन्य वेबसाइट पर
संस्कार धन - बोध कथा : मन का राजा
राजा भोज वन में शिकार करने गए लेकिन घूमते हुए अपने सैनिकों से बिछुड़ गए और अकेले पड़ गए। वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे। तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर बोझा उठाए गुजरा। वह अपनी धुन में मस्त था। उसने राजा भोज को देखा पर प्रणाम करना तो दूर, तुरंत मुंह फेरकर जाने लगा।
भोज को उसके व्यवहार पर आश्चर्य हुआ। उन्होंने लकड़हारे को रोककर पूछा, ‘तुम कौन हो?’ लकड़हारे ने कहा, ‘मैं अपने मन का राजा हूं।’ भोज ने पूछा, ‘अगर तुम राजा हो तो तुम्हारी आमदनी भी बहुत होगी। कितना कमाते हो?’ लकड़हारा बोला, ‘मैं छह स्वर्ण मुद्राएं रोज कमाता हूं और आनंद से रहता हूं।’ भोज ने पूछा, ‘तुम इन मुद्राओं को खर्च कैसे करते हो?’ लकड़हारे ने उत्तर दिया, ‘मैं प्रतिदिन एक मुद्रा अपने ऋणदाता को देता हूं। वह हैं मेरे माता पिता। उन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया, मेरे लिए हर कष्ट सहा। दूसरी मुद्रा मैं अपने ग्राहक असामी को देता हूं ,वह हैं मेरे बालक। मैं उन्हें यह ऋण इसलिए देता हूं ताकि मेरे बूढ़े हो जाने पर वह मुझे इसे लौटाएं।
तीसरी मुद्रा मैं अपने मंत्री को देता हूं। भला पत्नी से अच्छा मंत्री कौन हो सकता है, जो राजा को उचित सलाह देता है ,सुख दुख का साथी होता है। चौथी मुद्रा मैं खजाने में देता हूं। पांचवीं मुद्रा का उपयोग स्वयं के खाने पीने पर खर्च करता हूं क्योंकि मैं अथक परिश्रम करता हूं। छठी मुद्रा मैं अतिथि सत्कार के लिए सुरक्षित रखता हूं क्योंकि अतिथि कभी भी किसी भी समय आ सकता है। उसका सत्कार करना हमारा परम धर्म है।’ राजा भोज सोचने लगे, ‘मेरे पास तो लाखों मुद्राएं है पर जीवन के आनंद से वंचित हूं।’ लकड़हारा जाने लगा तो बोला, ‘राजन् मैं पहचान गया था कि तुम राजा भोज हो पर मुझे तुमसे क्या सरोकार।’ भोज दंग रह गए।
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बोध कथा-
विचार की पवित्रता
एक राजा और नगर सेठ में गहरी मित्रता थी। वे रोज एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह पाते थे। नगर सेठ चंदन की लकड़ी का व्यापार करता था। एक दिन उसके मुनीम ने बताया कि लकड़ी की बिक्री कम हो गई है। तत्काल सेठ के मन में यह विचार कौंधा कि अगर राजा की मृत्यु हो जाए, तो मंत्रिगण चंदन की लकडि़यां उसी से खरीदेंगे। उसे कुछ तो मुनाफा होगा। शाम को सेठ हमेशा की तरह राजा से मिलने गया। उसे देख राजा ने सोचा कि इस नगर सेठ ने उससे दोस्ती करके न जाने कितनी दौलत जमा कर ली है, ऐसा कोई नियम बनाना होगा जिससे इसका सारा धन राज खजाने में जमा हो जाए।
दोनों इसी तरह मिलते रहे, लेकिन पहले वाली गर्मजोशी नहीं रही। एक दिन नगर सेठ ने पूछ ही लिया, ‘पिछले कुछ दिनों से हमारे रिश्तों में एक ठंडापन आ गया है। ऐसा क्यों?’ राजा ने कहा, ‘मुझे भी ऐसा लग रहा है। चलो, नगर के बाहर जो महात्मा रहते हैं, उनसे इसका हल पूछा जाए।’ उन्होंने महात्मा को सब कुछ बताया। महात्मा ने कहा, ‘सीधी सी बात है। आप दोनों पहले शुद्ध भाव से मिलते रहे होंगे, पर अब संभवत: एक दूसरे के प्रति आप लोगों के मन में कुछ बुरे विचार आ गए हैं इसलिए मित्रता में पहले जैसा सुख नहीं रह गया।’ नगर सेठ और राजा ने अपने-अपने मन की बातें कह सुनाईं। महात्मा ने सेठ से कहा,’ तुमने ऐसा क्यों नहीं सोचा कि राजा के मन में चंदन की लकड़ी का आलीशान महल बनवाने की बात आ जाए? इससे तुम्हारा चंदन भी बिक जाता। विचार की पवित्रता से ही संबंधों में मिठास आती है। तुमने राजा के लिए गलत सोचा इसलिए राजा के मन में भी तुम्हारे लिए अनुचित विचार आया। गलत सोच ने दोनों के बीच दूरी बढ़ा दी। अब तुम दोनों प्रायश्चित करके अपना मन शुद्ध कर लो, तो पहले जैसा सुख फिर से मिलने लगेगा।’ 5